46 डिग्री तापमान में भी जिंदा रहकर खाद बनाने में सक्षम

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  46 डिग्री तापमान में भी जिंदा रहकर खाद बनाने में सक्षम

जोधपुर। राजस्थान के किसान अब भीषण गर्मी में भी जैविक केंचुआ खाद बनाने में सक्षम हो पायेंगे। दरअसल कृषि विश्वविद्यालय , जोधपुर ने राजस्थान के किसानों को बड़ी सौगात देते हुए "जय गोपाल वर्मीकल्चर" तकनीक के लिए "भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, उत्तरप्रदेश के साथ एमओयू किया है। गौरतलब है कि अन्य प्रजातियों के केंचुएं 30 से 40 डिग्री तापमान तक ही जीवित रह पाते हैं। लेकिन 'जय गोपाल’ स्वेदशी केंचुआ की प्रजाति 2 से 46 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी जीवित रह कर तेजी से जैविक खाद बनाने में सक्षम है । कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अरुण कुमार के अनुसार इस तकनीकी के हस्तांतरण से गर्म जलवायु वाले प्रदेश, राजस्थान के किसानों को अत्यधिक फायदा मिलेगा। यह स्वदेशी केचुआ पर्यावरण संरक्षण के साथ भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाने में कारगर है। किसानों की आर्थिक उन्नति के लिए यह तकनीक मील का पत्थर साबित होगी।

एमओयू कर किया तकनीकी हस्तांतरण

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कृषि विश्वविद्यालय के साथ भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जत नगर बरेली, उत्तर प्रदेश ने एमओयू कर 'जय गोपाल वर्मीकल्चर' तकनीक का हस्तांतरण किया है। कृषि विश्वविद्यालय की ओर से प्रसार शिक्षा, निदेशक, डॉ प्रदीप पगारिया ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एम एस चांदावत व डॉ बी एल मीणा भी मौजूद रहे।

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डॉ पगारिया ने बताया कि इस स्वदेशी प्रजाति का भीषण गर्मी एवं कठिन परिस्थितियों मे भी बहुत अच्छा प्रदर्शन है। जय गोपाल तकनीक के प्रयोग से राजस्थान के कृषि क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही केमिकल मुक्त पैदावार में भी वृद्धि होगी।

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जय गोपाल सर्वाधिक कारगर तकनीक

एम ओ यू के दौरान आईवीआरआई के निदेशक डॉ त्रिवेणी दत ने कहा कि उनके संस्थान की ओर से विकसित की गई स्वदेशी केंचुआ की यह‌ प्रजाति कम खर्चीली है। साथ ही भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित तकनीकों में सर्वाधिक कारगर तकनीक है। जैविक खाद को तैयार करने में प्रयोग किए जाने वाले विदेशी केंचुओं का जीवन कम होने के कारण मृदा की उर्वरक क्षमता खत्म जाती है। ऐसे में इस प्रजाति के केचुएं विकसित होने से किसानों को अधिक लाभ होगा।

मुर्गियों और मछलियों के लिए बेहतरीन आहार

डॉ प्रदीप पगारिया ने जानकारी देते हुए बताया कि इससे बनी हुई वर्मीकम्पोस्ट विदेशी केंचुओं से ज्यादा अच्छी होती है। विदेशी और सामान्य केंचुए 40 से ऊपर तापमान पर मर जाते हैं। नतीजन तेज गर्मी में किसानों को जैविक खाद बनाने में दिक्कत आती है यह उच्च तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर जीवित रहकर अपशिष्ट खाता है। एक सप्ताह में प्रत्येक केंचुए से 25 से 30 बच्चे पैदा होते है। इस प्रजाति से बनी हुई केंचुए की खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में बेहद लाभकारी है। इस केंचुए में प्रोटीन और एमीनो एसीड की प्रचुरता है जो मुर्गीपालन और मछली पालन के लिए भी पोषक व बेहतरीन आहार है। इन केंचुओं का जीवनकाल प्रचिलित केंचुओं से अधिक होता है। किसान देशी केंचुए जय गोपाल को अपनाकर और रसोई के जैविक कचरे व पशुओ के गोबर आदि के वेस्ट को अपनी खेती में प्रयोग करके इसका लाभ ले सकते हैं।

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