हैफा हीरो दलपतसिंह के पड़पौत्र ,पद्मश्री साहित्यकार अर्जुनसिंह शेखावत का निधन

Padma Shri litterateur Arjun Singh Shekhawat passed away

शेखावत का शुक्रवार को निधन हो गया। राजस्थानी भाषा व साहित्य में उल्लेखनीय योगदान देने पर शेखावत को 87 वर्ष की आयु में 9 नवम्बर 2021 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री से नवाजा था। उन्होंने 40 पुस्तकें लिखीं। उनकी अंतिम यात्रा शनिवार सुबह 10 बजे निकाली जाएगी।

अर्जुनसिंह शेखावत को 9 नवंबर 2021 को राजस्थानी साहित्य व शिक्षा के लिए राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया था।

अर्जुन सिंह शेखावत प्रथम विश्व युद्ध में हैफा शहर को अपने शौर्य व वीरता से महज 12 घंटे में ही आजाद कराने वाले हैफा हीरो दलपतसिंह के पड़पौत्र हैं। उनका पैतृक गांव देवली पाबूजी है।

शेखावत ने वर्ष 1967 में आदिवासी बहुल बाली इलाके में अध्यापक के रूप में अपना शैक्षिक सफर शुरू किया था। इसके बाद वहां पर ही उपजिला शिक्षा अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए। बाली में रहते हुए उन्हें आदिवासियों के जीवन को जानने का अवसर मिला। भारतीय साहित्य अकादमी सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके थे।

शेखावत 30 पुस्तकों की रचना कर चुके थे। इन पुस्तकों का 20 से अधिक भाषाई अनुवाद, समीक्षा व संपादन किया था । इस उम्र में भी वे 4 घंटे तक लगातार लिखते थे । सरल जीवन जीते थे । शेखावत बताते हैं कि नेमीचंद जैन भावुक के लेखन से प्रभावित होकर साहित्य को गद्य व पद्य शिल्प की तरह ढालने लगे। राजस्थानी व हिंदी में एमए, बीएड तथा आरएमपी कर चुके शेखावत ने आदिवासी संस्कृति के बारे में गहन शोध के बाद सरलतम शब्दों में अभिव्यक्त किया है।

इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद ‘द ट्राइबल कल्चर ऑफ गरासिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। इस लेखन को यूनेस्को पुरस्कार भी मिला है। आदिवासियों की जीवनशैली तथा उनकी संस्कृति पर राजस्थानी भाषा में लिखी पुस्तक भाखर रा भौमिया, आड़ावळ अरड़ायौ ने ताे पूरे देश में खासी चर्चा का विषय बनी।

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