होसबोले का बयान संविधान विरोधी मानसिकता का प्रतीक: अशोक गहलोत

आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले द्वारा संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग पर सियासी घमासान मच गया है। कांग्रेस ने इसे भाजपा और आरएसएस की संविधान विरोधी सोच का परिचायक बताया है।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तीखी प्रतिक्रिया में कहा कि दत्तात्रेय होसबाले के बयान से स्पष्ट है कि भाजपा- आरएसएस की संविधान विरोधी सोच से संचालित होती है। गहलोत ने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती केस (1973) में स्पष्ट किया था कि पंथनिरपेक्षता और समाजवाद

संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने 42वें संशोधन (1976) के जरिए इन मूल्यों को प्रस्तावना में जोड़कर संविधान की मूल भावना को मजबूत किया था।

आरएसएस की सोच जहरीली

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने आरएसएस की सोच को ‘जहरीली’ बताते हुए कहा कि वह संविधान की मूल भावना को मिटाकर एक ऐसी व्यवस्था लाना चाहता है जिसमें समानता, सामाजिक न्याय और दलित-आदिवासी अधिकारों की कोई जगह नहीं होगी। उन्हें मनुस्मृति आधारित समाज चाहिए, जिसमें सिर्फ ऊंची जातियों के लिए अधिकार सुरक्षित हों। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने आरोप लगाया कि 1949 से ही आरएसएस संविधान की आलोचना करता रहा है। उन्होंने न तो बाबा साहेब अंबेडकर को स्वीकार किया और ना ही संविधान निर्माताओं का सम्मान किया। जूली ने कहा कि ये लोग ‘नया संविधान’ लाने की बात करते हैं क्योंकि वे मौजूदा संविधान को पचा नहीं पा रहे।

गहलोत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मिनर्वा मिल्स (1980), एस.आर. बोम्मई (1994) और बलराम सिंह (2024) जैसे फैसले इस बात की पुष्टि करते हैं कि पंथनिरपेक्षता और समाजवाद

अटूट मूल्य हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि होसबाले जैसे बयानों से देश का माहौल खराब हो सकता है। यह अवमानना का विषय है और ऐसे बयानों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

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