सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने संविधान को संसद से ऊपर बताया है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि संसद सबसे ऊपर है, लेकिन ऐसा नहीं है। लोकतंत्र के तीनों अंग संविधान के अधीन काम करते हैं। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई इससे पहले भी संविधान को संसद से ऊपर बता चुके हैं। अमरावती में बार एसोसिएशन की तरफ से आयोजित किए गए सम्मान समारोह में सीजेआई ने अपनी बात दोहराई। उन्होंने कहा कि संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन वह इसकी मूल संरचना को नहीं बदल सकती। इसी वजह से संविधान इस देश में सर्वोपरि है।
केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 1973 में ‘मूल संरचना’ सिद्धांत स्थापित किया था। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीशों के लिए संविधान में एक कर्तव्य निर्धारित किया गया है और केवल सरकार के खिलाफ आदेश पारित करने से कोई स्वतंत्र नहीं बन जाता। उन्होंने यह भी कहा कि फैसले लेते समय एक जज को यह नहीं सोचना चाहिए कि लोग उसके फैसले को लेकर क्या सोचेंगे। एक न्यायाधीश को कानून ने कई कर्तव्य दिए हैं, जिनका पालन होना चाहिए।
इटली में कहा था- ‘सरकारें जज और जूरी नहीं बन सकतीं’
20 जून को इटली के मिलान में ‘सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने में संविधान की भूमिका’ पर बोलते हुए सीजेआई गवई ने कहा था कि सरकारें जज और जूरी नहीं बन सकती हैं। इसी दौरान उन्होंने अपने बुलडोजर जस्टिस के फैसले और भारतीय संविधान के आर्टिकल-21 का जिक्र किया था। इस दौरान उन्होंने बताया था कि पिछले 75 साल में न्यायालयों ने कैसे गरीब, पिछड़े और हाशिये पर पड़े लोगों को न्याय दिलाने में मदद की। उन्होंने बताया था कि इस मामले में सरकार ने कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए आरोपी का घर गिराने का आदेश दे दिया था, जिस पर कोर्ट ने रोक लगाई थी।