Politics in sports associations
or politics from sports
(अभय सिंह चौहान)
आज कल वास्तविक खिलाड़ियों को ये समझ में नहीं आ रहा है कि खेल संघों में राजनीति हो रही है या खेलों से राजनीति हो रही है,
आपको खेल संघों में पूर्व खिलाड़ी चिराग़ लेकर तलाशने पड़ेंगे,एक रिपोर्ट की मानें तो देश के सिर्फ़ चुनिंदा खेल संघ ऐसे हैं, जहां आपको वर्तमान और पूर्व खिलाड़ी खेल संघों में बड़े पदाधिकारी मिलेंगे !
खेल संघों पर राजनेताओं और रसूखदारों ने कब्जा कर रखा है, इसी वजह से देश में और राजस्थान में खेल बुरी हालत में है,इसीलिए खेलों का विकास नहीं हो रहा है।
खेल संघों पर नेताओं का कब्जा खेलों के लिए हानिकारक है ,जब तक हम खिलाड़ियों को सीधा समर्थन देने वाला सिस्टम नहीं लाते, खेल संघों में नेताओं की जगह खिलाड़ियों को ज़िम्मेदारी नहीं देते, तब तक भारत खेल में अपनी असली क्षमता नहीं प्राप्त कर सकता,भारत में असीम प्रतिभाएं हैं लेकिन जब तक खेल पर राजनीति हावी रहेगी तब तक खिलाड़ी चयन सही तरीके से नहीं हो पाएगा और खेल को आगे बढ़ाने की दिशा में कोई ठोस क़दम नहीं उठाया जा सकता !
मिली जानकारी के अनुसार खेल संघों में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार फैला हुआ है खिलाड़ियों के चयन में उच्च स्तर पर घालमेल कर उन्हीं खिलाड़ियों का है प्रतियोगिताओं के लिए चयन किया जाता है जो पदाधिकारियों और रसूख़ वालों के मिलने वाले होते हैं और उसमें से कुछ खिलाड़ी भी मात्र इसलिए बनते हैं ताकि उनका सरकारी नौकरियों में चयन हो सके !
लंबे समय से खेलों को राजनीति से दूर करने की मांग चली आ रही है फिर भी अधिकतर खेल संघों में बड़े पदों पर राजनेताओं या उनके परिजन का दबदबा अभी भी बरकरार है,कोई भी खेल संघ राष्ट्रीय महत्व रखता है, जिसके तहत उस खेल के सभी बड़े फैसले लिए जाते हैं,राजनेताओं और रसूखदारों को इन खेलों में तनिक भी रुचि नहीं होती लेकिन अपनी राजनीति चमकाने के लिए वे पदाधिकारी बन जाते हैं !
कुछ ही खेल संघ ऐसे बचे हैं जहाँ खेल में राजनीतिक दलों के नेताओं या नेता पुत्रों की सीधी या परोक्ष भूमिका न हो। कई जिलों में पूर्व मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और अन्य राजनीतिक हस्तियों के पुत्रों को पदाधिकारी बना उनकी राजनीति चमकाने का कार्य किया जा रहा है !
सियासी घुसपैठ से वे लोग हाशिये पर आ गए, जिन्होंने मुफलिसी के दौर में खेलों को अपने क्षेत्रों में परवान चढ़ाया।
बने।
वास्तविक और मेहनती खिलाड़ियों को ये समझ में नहीं आ रहा है कि यह खेलों में राजनीति आख़िर आई कहाँ से खेलों संघों में राजनीति सहित खेलों से भी राजनीति हो रही है !
दिसंबर 2004 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने खेल अध्यादेश लागू किया। इसके बाद चुनाव प्रणाली में बदलाव करते हुए व्यक्तिगत वोटिंग खत्म कर केवल जिला संघों को मतदान का अधिकार दिया गया।
2011 में कांग्रेस नेता सीपी जोशी के आरसीए में प्रवेश के साथ राजनेताओं के प्रवेश की शुरुआत हो गई। इसके बाद महेश जोशी (जयपुर), संयम लोढ़ा (सिरोही), रोहित बोहरा (धौलपुर), हेमाराम चौधरी (बाडमेर), वैभव गहलोत (राजसमन्द) और रामेश्वर डूडी (नागौर) जैसे कई बड़े नेता क्रिकेट राजनीति में उतर आए।
नेता पुत्रों का बढ़ा आकर्षण
मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर के बेटे धनंजय सिंह नागौर में अध्यक्ष
पूर्व मंत्री राजेन्द्र राठौड़ के बेटे पराक्रम सिंह चूरू में अध्यक्ष
पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी के बेटे आशीष तिवाड़ी सीकर में कोषाध्यक्ष
मंत्री मदन दिलावर के बेटे पवन दिलावर बारां में अध्यक्ष
पूर्व मंत्री जसवंत यादव के बेटे मोहित यादव अलवर में अध्यक्ष
मंत्री ओटाराम देवासी के बेटे विक्रम देवासी सिरोही में अध्यक्ष
आरएसएस नेता रमेश अग्रवाल के बेटे क्षितिज अग्रवाल पाली में अध्यक्ष
इनके अलावा कई केबिनेट मंत्री के रिश्तेदारों सहित हेमंत मीणा, पिंकेश पोरवाल, रामपाल शर्मा, गौरव बल्लभ, जयदीप बिहाणी जैसे नेता या उनके करीबी भी जिला संघों के प्रमुख पदों पर हैं।
किन-किन खेल संघों पर है राजनेताओं या उनके परिजनों का दबदबा
2011 से WFI के अध्यक्ष हैं भाजपा सांसद बृजभूषण
गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह हैं BCCI के सचिव
भारतीय बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष हैं असम के मुख्यमंत्री सरमा
TTFI की अध्यक्ष हैं हरियाणा के उपमुख्यमंत्री चौटाला की पत्नी
अमरिंदर के बेटे 12 साल तक रहे NRAI के अध्यक्ष
हॉकी और तीरंदाजी संघों के अध्यक्ष भी हैं राजनेता













