जब तपोवन में ब्रह्मलीन शंकराचार्य की स्मृति से झरा अमृत और शंकराचार्य जी की वाणी से जागा सनातन बोध

चातुर्मास्य महापर्व पंचम दिवस: नरसिंहपुर गोटेगांव मुकेश राय

मुण्डकोपनिषद् में आत्मा का उद्गम, और रामायण में नारद संवाद का गूढ़ रहस्य — पूज्य ब्रह्मचारीगण, दंडी संन्यासी व श्रोतागण बने साक्षी

*श्रीधाम, चतुर्मास पंचम दिवस।*

ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज की समाधिस्थ तपोभूमि आज मानो पुनः जीवंत हो उठी।
उनकी परंपरा में आसीन परम पूज्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज की दिव्य वाणी जब प्रवचन मंडप में गूंजी, तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे स्वयं वेदों की वाणी कानों में अमृत बनकर घुल रही हो।
*प्रातः प्रवचन* मुण्डकोपनिषद् की अमृतधारा में ‘उन्नत ऋषि’ की परीक्षा का प्रसंग
प्रातः 10:00 बजे पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने मुण्डकोपनिषद् के विशिष्ट श्लोकों पर गूढ़ भाष्य प्रस्तुत करते हुए आज “उन्नत ऋषि पर व्याध के आक्रमण” प्रसंग को उठाया।
यह कोई कथा नहीं यह आत्मा की परीक्षा थी।
पूज्यपाद जी ने बताया कि कैसे एक तपस्वी ऋषि पर जब कलि व्याध ने आक्रमण किया, तो वह केवल शरीर पर था आत्मा अचल रही।

> “यह शिक्षाप्रद प्रसंग दर्शाता है कि जब साधक स्थिर चित्त होता है, तो विकार उसे छू नहीं सकते।
बाह्य संघर्ष, केवल भीतर के ब्रह्मबल से ही जीते जा सकते हैं।”
मूलभाव:

“कलियुग का आक्रमण बाह्य नहीं है वह ध्यान, संयम और सत्य की परीक्षा है। मुण्डकोपनिषद् इन्हीं क्षणों में ‘ब्रह्म’ को देखने का साहस देती है।”
*शाम 5:00 बजे रामायण कथा में नारद-सनत्कुमार संवाद*

वाल्मीकि रामायण की संध्या कथा आज एक शास्त्रीय मोड़ पर पहुँची, जब पूज्य शंकराचार्य जी ने सनत्कुमार और नारद संवाद को उठाया।
सनत्कुमारों ने जब देवर्षि नारद से पूछा
> “आपने हमें तो रामकथा का केवल सार बताया है, किंतु हम जानना चाहते हैं कि जो मनुष्य रामायण पाठ करना चाहता है, उसके लिए क्या विधान है?”
इस पर नारद ने उत्तर दिया
> “वाल्मीकि रामायण कोई साधारण ग्रंथ नहीं, यह स्वयं शास्त्र-रूप है।
इसके पाठ के लिए शुचिता, नियम, श्रद्धा और गुरु कृपा ये चार स्तंभ आवश्यक हैं।”
उद्धृत चौपाई/श्लोक का भावार्थ:
> “रामायण पाठ केवल पाठ नहीं — वह साधक का स्वयं को मर्यादा, नीति, संयम और प्रेम में ढालने का तप है।”
पूज्यपाद जी ने कहा कि
> “आज के युग में रामकथा केवल सुनने का नहीं, जीने का विषय है।
और जो इसे जीवन में उतारता है, वही राम का अनुगामी बनता है।”

विशेष उपस्थिति और व्यवस्था: सचिव ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद जी महाराज व दंडी संन्यासीगण

पूरे आयोजन में पूज्य शंकराचार्य जी महाराज के निज सचिव दंडी संन्यासी ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद जी महाराज की उपस्थिति और संयोजन विशेष उल्लेखनीय रहा।
उनकी अगुवाई में ब्रह्मचारीगण और दंडी संन्यासी विधिपूर्वक मंच व व्यवस्था में निरंतर जुटे रहे।
श्रोतागण भी आज बड़ी संख्या में कथा स्थल पर उपस्थित थे, जहाँ वे न केवल कथा सुन रहे थे बल्कि सनातन धर्म की गंगा में डुबकी भी लगा रहे थे।

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