सीसामऊ उपचुनाव में मायावती और चन्द्रशेखर के वजूद का होगा इम्तिहान

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  सीसामऊ उपचुनाव में मायावती और चन्द्रशेखर के वजूद का होगा इम्तिहान

कानपुर । सीसामऊ विधानसभा सीट का उपचुनाव अब दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। एक ओर जहां बसपा का उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष और नगीना सांसद चन्द्रशेखर ने सपा उम्मीदवार नसीम सोलंकी को समर्थन कर दिया। ऐसे में अब देखना होगा कि दलित मतदाताओं में किसकी कितनी मजबूत पैठ है और बसपा के वोट बैंक में इजाफा होता है कि नहीं। हालांकि पिछले दो चुनाव से यहां का अधिकांश दलित मतदाता भाजपा के साथ रहा और सपा की भी सेंधमारी रही। वहीं बसपा का ग्राफ पिछले तीन चुनाव से लगातार नीचे गिरता गया और अंतिम बार तो तीन हजार का भी आंकड़ा नहीं छू सकी।

सपा विधायक इरफान सोलंकी की सदस्यता जाने से खाली हुई सीसामऊ विधानसभा की सीट पर हो रहे उपचुनाव में वैसे तो मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के ही बीच है, लेकिन पहली बार बसपा ने अपना उम्मीदवार उतार दिया है, वह भी ब्राह्मण। इस सीट पर पिछले तीन चुनाव से दलित मतदाता निर्णायक साबित होता चला रहा है। यह अलग है पिछले दो चुनाव से भाजपा यहां पर दलित मतदाताओं के बीच पैठ बना रही है और मोदी योगी लहर में पार्टी को काफी हद तक कामयाबी भी मिली, लेकिन जीत नहीं हासिल हो सकी। अबकी बार उपचुनाव में भाजपा जबरदस्त दलितों के बीच पैठ बनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन आमतौर पर उपचुनाव न लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी अबकी बार उपचुनाव लड़ रही है। इससे यह कयास लगाया जाने लगा कि जो दलित मतदाता सपा को मतदान नहीं करना चाहता वह भाजपा में आता, जिसमें रुकावट आ गई। इसी बीच रविवार को कानपुर पहुंचकर आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व नगीना सांसद चन्द्रशेखर ने अपना समर्थन सपा उम्मीदवार नसीम सोलंकी को कर दिया। सपा को वैसे भी कांग्रेस का पहले ही समर्थन प्राप्त है। ऐसे में दलित मतदाता किधर अधिक जाएगा और किसको विधानसभा पहुंचाएगा, यह सब अभी गर्त में छिपा है, लेकिन एक बात तय है कि बसपा प्रमुख मायावती और आजाद समाज पार्टी अध्यक्ष चन्द्रशेखर का इम्तिहान जरुर हो जाएगा। राजनीतिक विश्लेषक डॉ. अनूप सिंह ने सोमवार को बताया कि इसमें संशय नहीं है कि सीसामऊ सीट पर भाजपा की पकड़ मजबूत हुई है, लेकिन सपा को भी सहानुभूति मिल रही है। कांग्रेस के बाद चन्द्रशेखर का समर्थन दलितों को सोचने पर मजबूर कर दिया। रही बात बसपा की तो उसका ग्राफ लगातार घट रहा है और न ही अबकी बार कुछ अलग होता दिखाई दे रहा है।

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65 हजार है दलित मतदाता

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सीसामऊ सीट पर दलित मतदाता मुस्लिम, ब्राह्मण के बाद सबसे अधिक है और इनकी संख्या करीब 65 हजार बताई जा रही है। यह मतदाता अमूमन बसपा का माना जाता है, लेकिन पिछले तीन विधानसभा चुनाव से बसपा को लगातार कम वोट मिल रहे हैं। पिछली बार तो तीन हजार का भी बसपा उम्मीदवार रजनीश तिवारी ने आंकड़ा नहीं पार नहीं कर पाये थे। इस सीट पर सबसे अधिक करीब 1.10 लाख मुस्लिम मतदाता है। दूसरे नंबर पर ब्राह्मण मतदाता है जिसकी संख्या करीब 70 हजार है जो भाजपा का आधार मतदाता है। तीसरे नंबर पर दलित मतदाता है जिसकी संख्या करीब 65 हजार है। इसके अलावा करीब 30 हजार वैश्य, 10 हजार क्षत्रिय, 10 हजार कायस्थ और करीब 30 हजार ओबीसी मतदाता है।

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इस तरह सपा की होती जीत

इस सीट पर जीत का गणित यह है कि सपा को मुस्लिम मतदाता एकतरफा मतदान करता है। ओबीसी और दलित मतदाताओं में इरफान सोलंकी के पिता पूर्व विधायक रहे हाजी मुश्ताक सोलंकी की पकड़ अच्छी रही जिससे इन मतदाताओं में भी सपा की सेंधमारी हो जाती है। वहीं भाजपा को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और कायस्थ का एकतरफा वोट मिलता है। इस प्रकार अगर दलित मतदाताओं को हटा दिया तो सपा और भाजपा का लगभग बराबर मत हो जाता है। ऐसे में दलित मतदाताओं की अहम भूमिका हो जाती है और जीत हार में निर्णायक साबित होते हैं, क्योंकि यहां के दलित मतदाताओं में बराबर बसपा की पकड़ कमजोर होती जा रही है जिससे दलित मतदाताओं में बंटवारा हो रहा है।

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