श्रीराम बनकर घर-घर में फेमस हुए अभिनेता अरुण गोविल

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    श्रीराम बनकर घर-घर में फेमस हुए अभिनेता अरुण गोविल

वर्तमान समय में अरुण गोविल मेरठ-हापुड़ लोकसभा से बीजेपी सांसद हैं। वह हिंदी सिनेमा के बड़े स्टार बनना चाहते थे, लेकिन उन्होंने टीवी सीरियल में श्रीराम का रोल प्ले किया और इसके बाद वह घर-घर में पूजे जाने लगे। इस किरदार ने अभिनेता अरुण गोविल की जिंदगी बदल दी। तो आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर अभिनेता अरुण गोविल के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

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उत्तर प्रदेश के मेरठ में 12 जनवरी 1958 को अरुण गोविल का जन्म हुआ था। अरुण गोविल ने बचपन का कुछ समय शाहजहांपुर में भी बिताया था। वहीं इन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से बीएससी की डिग्री ली। अरुण गोविल के पिता चाहते थे कि वह सरकारी नौकरी करें और उन्होंने इसकी कोशिश भी की। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। साल 1975 में अरुण गोविल अपने भाई के पास मुंबई आ गए औऱ उनका बिजनेस ज्वॉइन कर लिया। लेकिन यहां भी मन न लगने के कारण अरुण गोविल ने थिएटर करना शुरूकर दिया।

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अरुण गोविल की फिल्में

काफी मेहनत और संघर्ष के बाद साल 1977 में अरुण गोविल को पहली फिल्म 'पहेली' मिली। फिर अभिनेता ने साल 1979 में 'सांच को आंच नहीं', साल 1979 में 'सावन को आने दो' जैसी फिल्मों में काम किया। लेकिन इन फिल्मों से अरुण गोविल को कोई खास पहचान नहीं मिल सकी। उसके बाद साल 1985 में अभिनेता ने रामानंद सागर के सीरियल 'विक्रम और बेताल' के लिए ऑडिशन दिया। इस दौरान उनको विक्रम का रोल मिला।

रामायण से मिली पहचान

बता दें कि अभिनेता अरुण गोविल को असली पहचान रामानंद सागर के सीरियल 'रामायण' से मिली थी। अरुण गोविल ने एक बार बताया कि रामानंद सागर रामायण सीरियल बनाना चाह रहे थे। इसके कास्ट के लिए ऑडिशन हो रहे थे। जब अरुण गोविल को पता चला, तो वह रामानंद सागर के पास राम का रोल मांगने के लिए पहुंचे। लेकिन तब रामानंद सागर ने उनको यह कहते हुए मना कर दिया कि वह राम का रोल नहीं निभा पाएंगे।

वहीं जब रामानंद को बहुत ढूंढने के बाद भी राम के रोल के लिए कोई नहीं मिला। तब उन्होंने अरुण गोविल का ऑडिशन लिया और वह राम के किरदार के लिए सिलेक्ट हो गए। इस रोल से अरुण गोविल की किस्मत पलट गई और उनको घर-घर में एक अलग पहचान मिली। साल 1987 में आए इस धार्मिक सीरियल में अरुण गोविल द्वारा निभाए गए श्रीराम के किरदार के बाद से लोग उन्हें सच में भगवान समझने लगे थे।

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