लोकतंत्र के संघर्ष संग राजनीतिक घटनाक्रम को सामने लाती है Kangana Ranaut
कंगना रनौत की इमरजेंसी भारतीय इतिहास के उस दौर को दिखाती है, जब आपातकाल के दौरान देश पर इंदिरा गांधी का नियंत्रण था। यह फिल्म लोकतंत्र के संघर्ष और राजनीतिक घटनाक्रम को सामने रखती है। वहीं कहना होगा कि कंगना ने इसमें अपने अभिनय और निर्देशन से जान डाल दी है।
यह फिल्म 1975-77 के दौरान इंदिरा गांधी के आपातकाल पर आधारित है। उस समय नागरिक अधिकार छीन लिए गए थे और सरकार ने अपनी ताकत का भरपूर इस्तेमाल किया था। फिल्म में कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी के किरदार को बखूबी निभाया है।
फिल्म में बांग्लादेश की आज़ादी का संघर्ष, ऑपरेशन ब्लू स्टार, खालिस्तानी आंदोलन और इंदिरा गांधी की हत्या जैसी घटनाओं को भी दर्शाया गया है। मगर इस कहानी की असली धड़कन इमरजेंसी का दौर ही है।
कंगना के निर्देशन में आत्मविश्वास और साहस झलकता है। उन्होंने इतिहास और मानवीय भावनाओं के बीच संतुलन बनाए रखने में सफलता पाई है। फिल्म बिना किसी पक्षपाती दृष्टिकोण के भारतीय राजनीति की जटिलताओं को बेबाकी से सामने रखती है।
अभिनय के लिहाज से सह-कलाकारों ने फिल्म में अपनी भूमिका को बखूबी निभाया है। विषाक नायर ने संजय गांधी के व्यक्तित्व की हर परत को परफेक्शन से दिखाया, और अनुपम खेर ने जयप्रकाश नारायण के किरदार में जान फूंक दी है।
पूपुल जयकर की भूमिका में महिमा चौधरी ने अपनी अदाकारी से संवेदनशीलता और गरिमा का खूबसूरत संगम पेश किया है। मिलिंद सोमन सैम मानेकशॉ के किरदार में पूरी तरह रमे हुए हैं, और सतीश कौशिक ने जगजीवन राम का व्यक्तित्व बेहद प्रभावशाली तरीके से दर्शाया है।
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी 70 के दशक के भारत को इस तरह से प्रस्तुत करती है कि दर्शक उस दौर में खो जाते हैं। सीन की प्रामाणिकता कमाल की है। बैकग्राउंड स्कोर और गाने कहानी को ज्यादा दमदार बनाते हैं। "सिंहासन खाली करो" और "सरकार को सलाम है" जैसे गाने फिल्म का मुख्य आकर्षण हैं।
"इमरजेंसी" एक शानदार फिल्म है, जो भारत के इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को दर्शकों के सामने लाती है। कंगना रनौत ने अपने अभिनय और निर्देशन से इस कहानी को खास बना दिया है। यह फिल्म न सिर्फ सोचने पर मजबूर करती है, बल्कि दर्शकों को भावनात्मक रूप से भी जोड़ती है। भारतीय राजनीति के इस खास हिस्से को समझने के लिए इस फिल्म को सभी द्वारा जरूर देखना चाहिए।
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