पर्दे के पीछे से लगभग तीन दशक तक राजनीति करती रही हैं प्रियंका,

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   पर्दे के पीछे से लगभग तीन दशक तक राजनीति करती रही हैं प्रियंका,

प्रियंका गांधी वाड्रा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कांग्रेस की पूर्व अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की बेटी हैं। जो लगभग हर चुनावों में कांग्रेस की स्‍टार प्रचारक के रूप में दिखाई देती हैं। कई बार प्रियंका के नाम का सुझाव कांग्रेस के अध्‍यक्ष पद के लिये भी दिया गया, लेकिन वे खुद कभी पार्टी की बागडोर हाथ में लेने के लिये आगे नहीं आयीं। पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी के इस्तीफा देने के बाद खाली हुई वायनाड सीट से चुनाव जीतकर वे पहली बार सक्रिय राजनीति में उतरी हैं। उन्‍होंने मनोविज्ञान में स्‍नातक की पढ़ाई की और फिर आगे चलकर पोस्‍टग्रेजुएशन किया है।

प्रियंका का शुरुआती जीवन और शिक्षा

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कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी का जन्म 12 जनवरी 1972 को दिल्ली में राजीव गांधी और सोनिया गांधी के घर हुआ था, जो उनके दो बच्चों में से छोटी थीं। उनके बड़े भाई राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से 2024 के लोकसभा चुनाव में जीतकर सांसद बने हैं और लोकसभा में विपक्ष के 12वें नेता हैं । वह भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ फिरोज गांधी की पोती और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की परपोती हैं ।

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वायनाड सांसद प्रियंका ने 1984 तक देहरादून के वेल्हम गर्ल्स स्कूल में अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की । इसके बाद सुरक्षा कारणों से राहुल और उन्हें दोनों को दिल्ली के डे स्कूल में भेज दिया गया। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लगातार आतंकी धमकियों के कारण उन्हें और उनके भाई राहुल को घर पर ही पढ़ाया गया। बाद में वह दिल्ली के कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी में शामिल हो गईं। इसके बाद उन्होंने जीसस एंड मैरी कॉलेज, नई दिल्ली से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री पूरी की और 2010 में बौद्ध अध्ययन में मास्टर डिग्री हासिल की। 1997 में गांधी ने दिल्ली के एक व्यवसायी रॉबर्ट वाड्रा से शादी की और प्रियंका गांधी वाड्रा नाम का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। दंपति के दो बच्चे हैं।

राजनीतिक सफर

प्रियंका गांधी वाड्रा नियमित रूप से कांग्रेस के गढ़ रहे रायबरेली और अमेठी के निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा करती थीं, जहाँ उन्होंने स्थानीय निवासियों के साथ सीधे बातचीत की। 2004 के भारतीय आम चुनाव में उन्होंने अपनी माँ के अभियान प्रबंधक के रूप में काम किया और अपने भाई राहुल गांधी के अभियान की देखरेख में सहायता की। 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान जबकि राहुल गांधी ने राज्यव्यापी अभियान का प्रबंधन किया। उन्होंने अमेठी और रायबरेली क्षेत्र की दस सीटों पर ध्यान केंद्रित किया और सीट आवंटन पर पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच अंदरूनी कलह को संबोधित करने में दो सप्ताह बिताए।

उपचुनाव में वायनाड से बनीं सांसद

साल 2024 के आम चुनाव के दौरान कांग्रेस के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार करने और पार्टी के भीतर अधिक संगठनात्मक भूमिका निभाने के बाद उन्होंने घोषणा की कि वह चुनावी राजनीति में शामिल होंगी और अपने भाई राहुल की जगह लेने के लिए वायनाड उपचुनाव में पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगी। उन्होंने 4,10,931 मतों के अंतर से चुनाव जीता। वह अपनी मां सोनिया और भाई राहुल के साथ संसद में काम करेंगी। वह और उनके भाई 18वीं लोकसभा में एक साथ सेवा करने वाले एकमात्र भाई-बहन हैं । 

पर्दे के पीछे से तीन दशक की है राजनीति

कांग्रेस की राजनीति में प्रियंका गांधी पर्दे के पीछे से तो काफी लंबे समय से सक्रिय रही हैं। राजीव गाँधी के निधन के बाद से ही वो अपनी मां सोनिया गांधी के चुनाव अभियानों का जिम्मा संभालती रही हैं। इसके अलावा 2004 में जब उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से राहुल गांधी सक्रिय राजनीति में आए तो प्रियंका गांधी ने ही उनके लिए जोरदार जनसंपर्क अभियान चलाया था। लेकिन उन्होंने खुद को बैकग्राउंड में ही रखा। पहली बार उनकी राजनीति में आधिकारिक एंट्री 2019 को लोकसभा चुनाव से पहले हुई जब उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी अभियान का प्रभारी बनाया गया।

हालांकि, इसके बाद 2022 में यूपी के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा। तब उनके आलोचकों ने कहा था कि प्रियंका गांधी के तौर पर कांग्रेस का तुरूप का पत्ता चूक गया। 2019 के जब प्रियंका गांधी को कांग्रेस महासचिव बनाया गया था तो ये चर्चा थी कि वो अपनी मां की पारंपरिक सीट रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं। यहां तक कि उन्हें चुनाव में खड़े होने की अपील करते हुए पोस्टर भी लग गए थे। लेकिन उन्हें चुनाव मैदान में नहीं उतारा गया।

 

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