बीजेपी का राजनीतिक नज़रिया :

जयपुर।भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि वह ध्रुवीकरण की राजनीति करती है, खासकर हिंदू वोट बैंक को साधने के लिए। पिछले कुछ वर्षों में नफरत भरे बयान, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें और मुस्लिम समुदाय के प्रति एक खास रुख बीजेपी के नेताओं के भाषणों और नीतियों में साफ दिखा है। अब जब 'सौगात-ए-मोदी' नाम से एक अभियान ईद के मौके पर चलाया जा रहा है, तो सवाल उठता है—क्या बीजेपी अब अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रही है, या फिर यह सिर्फ एक रणनीतिक कदम है?
क्या मुसलमानों का बीजेपी पर विश्वास बढ़ेगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुसलमानों का एक बड़ा तबका आज भी बीजेपी को लेकर संदेह की स्थिति में है। 2014 से पहले और बाद में भी मुसलमानों पर हमले, मॉब लिंचिंग, सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दों पर बीजेपी सरकार की भूमिका ने समुदाय में असुरक्षा का भाव बढ़ाया है। ऐसे में 500-600 रुपये की किट क्या उस गहरी अविश्वास की खाई को भर पाएगी?
बिहार चुनाव और मुस्लिम वोट बैंक
बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब 17% है, और वे कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बीजेपी लंबे समय से इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, लेकिन अब तक उसे सीमित सफलता ही मिली है। क्या यह 'सौगात-ए-मोदी' अभियान बीजेपी के खिलाफ मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने की एक चाल है?
राजनीतिक विरोध और तीखी प्रतिक्रियाएं
विपक्षी नेताओं ने इस अभियान को लेकर कई सवाल उठाए हैं। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य दल इसे बीजेपी की दिखावटी राजनीति कह रहे हैं। पप्पू यादव इसे 'मगरमच्छ के आंसू' करार देते हैं, तो रंजीत रंजन इसे चुनावी लॉलीपॉप बता रही हैं। विपक्षी नेताओं का कहना है कि अगर बीजेपी को मुसलमानों की भलाई की इतनी ही चिंता थी, तो शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा के लिए ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए?
क्या यह महज एक ‘इवेंट मैनेजमेंट’ है?
बीजेपी और नरेंद्र मोदी की राजनीति को अक्सर एक भव्य इवेंट मैनेजमेंट की तरह देखा जाता है। चाहे 'मन की बात' हो, 'स्वच्छ भारत अभियान' हो या फिर 'हर घर तिरंगा', बीजेपी की राजनीति बड़े स्तर पर प्रचार और छवि निर्माण पर केंद्रित रहती है। ऐसे में 'सौगात-ए-मोदी' भी क्या सिर्फ एक और इवेंट है, जिससे चुनावी फायदे की उम्मीद की जा रही है?
About The Author
Related Posts
Post Comment
Latest News

Comment List