अलवर में पाण्डुपोल मेला आज, उमड़ा भक्तों का सैलाब

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  अलवर में पाण्डुपोल मेला आज, उमड़ा भक्तों का सैलाब

अलवर । शहर से 55 किलोमीटर दूर सरिस्का में बसा हैं पांडुपोल हनुमान जी का मंदिर। यह अलवर जिले सहित देशभर के हनुमान भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां हर मंगलवार व शनिवार को दूर-दूर से भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। यहां खास बात यह हैं कि पाण्डुपोल में हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा हैं जो देशभर में कही नहीं हैं। आज पाण्डुपोल हनुमान जी का भर मेला हैं। बड़ी संख्या में लोग पूजा अर्चना औऱ दर्शन करने के लिए वहा पहुंच रहे हैं। आज के दिन घर-घर में हनुमान जी की ज्योत देखी जाती हैं। पुलिस औऱ प्रशासन कि औऱ से मेले को देखते हुए माकूल व्यवस्था की गई हैं। पहले पांडुपोल जाने के लिए शुल्क लगता था लेकिन सरकार द्वारा श्रद्धालुओं की मांग पर यह शुल्क हटा लिया गया। अब निशुल्क की पांडुपोल मंदिर में श्रद्धालु जा सकते हैं। जिला प्रशासन की ओर से मेले के अवसर पर प्रतिवर्ष राजकीय अवकाश घोषित किया जाता है। सरिस्का में बसें होने के कारण यहां का सौंदर्य, वन्य जीव जंतु आदि श्रद्धालुओं का मन मोह लेते हैं।

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ऐसा बताया जाता है कि महाभारत काल में द्रोपती नियमित दिनचर्या के अनुसार एक घाटी के नीचे की और नाले के जलाशय पर स्नान करने गई थी। एक दिन स्नान करते समय नाले में ऊपर से जल में बहता हुआ एक सुंदर पुष्प आया। द्रोपती ने उस पुष्प को लेने के लिए महाबली भीम को भेजा। भीम जलधारा की ओर बढ़ने लगे तभी भीम की परीक्षा लेने के लिए हनुमान जी वानर बनाकर रास्ते में लेट गए। जब भीम यहां से गुजर रहा था तो उन्होंने लेटे हुए वानर को यहां से हटने के लिए कहा लेकिन वानर ने कहा कि मैं यहां से नहीं हट रहा। तुम चाहो तो मेरी पूछ यहां से उठाकर रास्ते से हटा सकते हो। ऐसा कहने पर भीम ने पूछ उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह हिला भी नहीं पाया। तब भीम ने पूछा कि आप कौन हैं अपना परिचय दीजिए। तब वानर रूप हनुमान जी ने अपना परिचय दिया। इसके बाद पांडवों ने इसी स्थान पर हनुमान जी की पूजा अर्चना की। तब से इस स्थान पर लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर बनाकर उसकी पूजा की जाने लगी।

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ऐसा बताया जाता है कि महाभारत काल में कौरव व पांडवों का युद्ध के दौरान पांडवों ने सरिस्का क्षेत्र में अज्ञातवास का समय बिताया था। कौरवों को इस बात का पता चल गया कि पांडव इस जगह आए हुए हैं तो वह खोजते हुए यहां तक आ गए। उनसे बचने के लिए पांडु पुत्र भीम ने पहाड़ी पर अपनी गदा से प्रहार किया तो पहाड़ी में आर पार बड़ा रास्ता बन गया। इस जगह को ही पांडुपोल के नाम से जाना जाता है।

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