दलित दूल्हे की बारात पुलिस की कड़ी निगरानी में,
अजमेर। यह घटना समाज में जातिगत भेदभाव की जड़ें और इससे उपजने वाले तनाव को उजागर करती है। 20 साल पहले लवेरा गांव में हुए विवाद की छाया आज भी महसूस की गई, जब दलित बैंक कर्मचारी विजय रैगर की बारात भारी सुरक्षा के बीच निकाली गई।
2005 में नारायण रैगर की बहन सुनीता की शादी के दौरान गांव के प्रभावशाली वर्ग ने घोड़ी पर दूल्हे को बैठने से रोका था। तब पुलिस सुरक्षा में बारात पुलिस जीप से निकाली गई थी। इस घटना ने रैगर परिवार को गहरे तक प्रभावित किया।
हालिया बारात के लिए विजय रैगर के परिवार ने पहले ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से सुरक्षा मांगी थी। 75 पुलिसकर्मियों, 20 महिला कांस्टेबलों और ड्रोन निगरानी के बीच बारात निकली।
प्रशासन ने संवेदनशीलता दिखाते हुए दोनों पक्षों से बात की। विवादित रूट पर बारात निकालने और डीजे बजाने पर सहमति नहीं बनी। इसके बावजूद बारात का सफल आयोजन समुदाय में बदलाव की बयार का संकेत है।
दिनेश और सुनीता, जो 2005 की घटना के साक्षी रहे थे, इस बार विजय को घोड़ी पर बैठा देखकर बेहद खुश हुए। यह सिर्फ विजय और उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक समानता के लिए भी एक बड़ी जीत है।
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