पाकीज़ा फिल्म में पाकीज़ा कौन थी ?
अधिकतर दर्शक यही समझते हैं - फिल्म पाकीज़ा में मीना कुमारी ही पाकीज़ा हैं - बल्की कहानी कुछ और है - बकौल कमाल अमरोही के पुत्र सिनेमा के अंतिम दृश्यों में - जब राजकुमार मीना कुमारी को इज्जत के साथ विदा कर के ले जाते हैं - उसी दृश्य में - एक छोटी सी टीनएजर लड़की पर कैमरा फोकस करता है - वो लड़की बारात को देख बहुत खुश होती है - उसे लगता है एक दिन उसके लिए भी बारात आयेगी और वो भी मीना कुमारी की तरह हंसी खुशी विदा लेगी - पर ऐसा नहीं है - वो लड़की अब बस चंद दिनों में कोठे पर नाचने को थी ।
इस सिनेमा के एडिटर डी एन पाई ने लगभग इस दृश्य को उड़ा दिया था - जब कमाल अमरोही को पता चला - वो पाई साहब को समझाए - पाई साहब बोले - "यही लड़की पाकीज़ा है ..यह बात कौन समझेगा ? " कलाम अमरोही बोले - " अगर एक आदमी भी समझ गया - यही लड़की पाकीज़ा है - समझो मेरी मेहनत पुरी हुई - दिल को तसल्ली मिलेगी " ..
लगभग एक साल बाद - कमाल अमरोही को एक दर्शक का ख़त आया - जिसमे उस मासूम लड़की के पाकीज़ा होने का ज़िक्र था ! कमाल आरोही ने पाई साहब को बुलाया और ख़त दिखाया ...:) फिर उस दर्शक को पुरे देश के सिनेमा हॉल के लिए एक फ्री पास जारी किया ...अब वो दर्शक पुरे भारत के किसी भी सिनेमा हॉल में कमाल अमरोही के ख़ास गेस्ट बन पाकीज़ा को जब चाहें और जितनी बार चाहें देख सकते थे !
कोई भी क्रिएटीव इंसान अपनी क्रिएटिविटी में कुछ अलग सन्देश देना चाहता है - जिसे बहुत कम लोग समझ पाते हैं - क्योंकी हर कोई उस नज़र से ना पढता है और ना ही देखता है ...और उसको असल मेहताना उसी दिन पूरा मिलता है - जिस दिन कोई उसके सन्देश को सचमुच में समझता है !
यह सिनेमा कई मायने में एक तहलका थी । सिनेमा को बनने में ही 17 साल लग गए । गीत ऐसे ही जैसे स्त्री मनोभाव को हर गीत में डूबा दिया गया हो । पिछले दो पीढ़ी की महिलाओं का सबसे पसंदीदा गीत " चलते चलते" के साउंड रिकॉर्डिंग के लिए ट्रेन की असल सीटी की आवाज के लिए कई भोर यूनिट को जागना पड़ा ।
सबसे महत्वपूर्ण की पूरा सिनेमा राजकुमार के उस डायलॉग पर चलती है "आपके पांव देखे"उसके बाद मीना कुमारी का क्या हाल होता है , बस यही सिनेमा है दुर्भाग्य की अपनी सिनेमा की सफलता देखने के पूर्व ही मीना कुमारी चल बसी ।
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