दक्षिण कोरिया में अब विपक्ष का कार्यवाहक राष्ट्रपति हान डक-सू के खिलाफ मोर्चा
सियोल । दक्षिण कोरिया में अब विपक्ष ने कार्यवाहक राष्ट्रपति हान डक-सू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मुख्य विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ कोरिया (डीपीके) ने हान पर संवैधानिक न्यायालय में खाली तीन जजों के पदों पर नियुक्ति पर आनाकानी का आरोप लगाया है। साथ ही महाभियोग का सामना करने के लिए चेताया है।
द कोरिया टाइम्स और द कोरिया हेराल्ड ने अपनी खबर में इस विवाद पर विस्तार से चर्चा की है। दरअसल कार्यवाहक राष्ट्रपति हान ने कहा है कि वह तब तक संवैधानिक न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं करेंगे जब तक प्रतिद्वंद्वी पार्टियां राजनीतिक समझौता नहीं कर लेतीं। उनके इस बयान के बाद डीपीके ने कार्यवाहक राष्ट्रपति हान के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश कर गुरुवार को नेशनल असेंबली के पूर्ण सत्र में इसकी सूचना दी।
डीपीके की मांग है कि नौ सदस्यीय संवैधानिक न्यायालय के तीन खाली पदों पर कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्ति को मंजूरी दें। दरअसल संवैधानिक न्यायालय को यह तय करना है कि तीन दिसंबर की अल्पकालिक मार्शल लॉ घोषणा पर राष्ट्रपति यून सुक येओल के खिलाफ पारित हो चुके महाभियोग प्रस्ताव को चलाया जा सकता है या नहीं।
देश के संविधान के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव को बरकरार रखने के लिए संवैधानिक न्यायालय में कम से कम छह मतों की आवश्यकता होती है।
मुख्य विपक्षी दल डीपीके ने शुक्रवार को नेशनल असेंबली के पूर्ण सत्र के दौरान कार्यवाहक राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर मतदान कराने की रणनीति तैयार की है। कार्यवाहक राष्ट्रपति हान डक-सू ने साफ कहा कि वह द्विदलीय समझौते के बिना किसी भी न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं करेंगे। इसके बाद डेमोक्रेटिक पार्टी ने हान पर महाभियोग चलाने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इसमें कार्यवाहक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को मार्शल लॉ की अल्पकालिक घोषणा का "सहयोगी" बताया गया।
उल्लेखनीय है कि 300 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है। उसके 170 सदस्य हैं। 108 सदस्यों वाली सत्तारूढ़ पीपुल्स पावर पार्टी ने गुरुवार को नेशनल असेंबली के मतदान सत्र का बहिष्कार किया। इस घटनाक्रम से कुछ समय पहले कार्यवाहक राष्ट्रपति हान ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि नए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए द्विदलीय समझौता एक शर्त है। हान ने कहा, "मैं नए संवैधानिक न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के अपने निर्णय को तब तक रोक कर रखूंगा जब तक कि सत्तारूढ़ और मुख्य विपक्षी दल न्यायाधीशों के लिए नामांकित व्यक्तियों के संबंध में समझौता नहीं कर लेते।
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