प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदलने की कवायद तेज !
हाल ही में हुए उपचुनावों में पाँच विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस की ज़मानत ज़ब्त होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के विरोध में पार्टी में स्वर तेज हो गए हैं हालाँकि गोविंद सिंह डोटासरा हार का ठीकरा वहाँ से चुने गए सांसदों पर फोड़ने का प्रयास कर रहे हैं गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभालें पाँच वर्ष हो गए हैं लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की जिस तेज़ी से साख गिरती जा रही यह है यह इनके कार्य कलापों का ही परिणाम है प्रदेश के अधिकांश कार्यकर्ता अपना दुखड़ा किसे सुनाए अधिकांश पदाधिकारी काग़ज़ों में ही बने हुए हैं प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा मुख्यालय में कभी कभार ही आते हैं वहीं प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में एक या दो पदाधिकारियों के अलावा एक सो अट्ठावन पदाधिकारियों ने शायद बने तभी मुख्यालय देखा हो उसके बाद कहाँ हे बनाने वाला भी शायद ही जानता हो!
सूत्रों ने बताया कि विगत दो माह से प्रदेश गोविंद सिंह डोटासरा के ख़ास संगठन महासचिव ललित तुनवाल नई कार्यकारणी की रूप रेखा को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं लेकिन एक वर्ष से कम समय में हुए विधानसभा उपचुनाव में सात में से पाँच स्थानों पर ज़मानत ज़ब्त होना अध्यक्ष की कार्यप्रणाली को दर्शाता है ,सूत्रों ने बताया कि प्रदेश में उपचुनाव में मिली करारी हार को केंद्रीय नेतृत्व ने गंभीरता से लिया है और नेताओं की इन चुनावों में भूमिका संदिग्ध होने की सूचना को भी गंभीरता से लिया जा रहा है बताया जाता है कि पंजाब प्रांत मूल के प्रदेश में प्रभारी बने सुखविंदर सिंह रंधावा प्रदेश के लिए दिमक साबित हुए हैं सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस सरकार के समय टिकट वितरण में प्रभारी रंधावा ने धन बल के आधार पर टिकट वितरण कराए, यही नहीं अपने रिश्तेदारों को प्रचार प्रसार का जिम्मा दिला करोड़ों रुपये की हेरा-फेरी करने में भी बड़ा हाथ बताया गया ,इनके कार्य कलापों से सरकार आना तो दूर की कौड़ी साबित हुआ यही नहीं प्रभारी रंधावा ने बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को प्रदेश सदस्य ही नहीं वरन् पदाधिकारी बना दिया इससे ज़मीनी स्तर पर कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं में रोष देखा गया ,जिसका परिणाम पहले सरकार गंवाकर और उपचुनाव में ज़मानत ज़ब्त के रूप में देखा गया ,बताया जाता है कि प्रभारी एवं प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा में आपसी तालमेल नहीं है प्रभारी रंधावा ने लोक सभा के चलते चुनाव में पैतालीस के क़रीब पदाधिकारी बनाए थे इनमें से अधिकांश पार्टी छोड़ चुके हैं जो बाक़ी रहे उन्हें प्रदेश अध्यक्ष ने मान्यता नहीं दी लेकिन यह पदाधिकारी ज़बरन प्रदेश मुख्यालय में कुर्सी पर क़ब्ज़ा जमाए देखे जा सकते हैं हालाँकि इन पदाधिकारियों का कहना वहाँ कार्यरत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी नहीं मानते लेकिन ये पदाधिकारी कार्यालय में बैठकर प्रॉपर्टी का व्यवसाय करने में मशग़ूल देखे जा सकते हैं ऐसे में संगठन की स्थिति क्या है यह किसी से छुपी नहीं डोटासरा इसी के सहारे क्या कांग्रेस की नैया पार लगाएंगे अब आने वाला समय बताएगा !
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