जनजातीय नायकों के पुरुषार्थ एवं कृतित्व को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की आवश्यकता: मंत्री परमार

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जनजातीय नायकों के पुरुषार्थ एवं कृतित्व को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की आवश्यकता: मंत्री परमार

- समस्त विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय के पुस्तकालयों को जनजातीय योगदान से जुड़े साहित्य से समृद्ध करेंगेः उच्च शिक्षा मंत्री

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भोपाल। अतीत के कालखंडों में इतिहासकारों ने जनजातीय नायकों एवं महापुरुषों के पुरुषार्थ एवं कृतित्व के साथ न्याय नहीं किया। इतिहास के पन्नों में जनजातीय नायकों के संघर्ष, शौर्य, पराक्रम, बलिदान और त्याग को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत नहीं किया गया। जनजातीय समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक गौरवपूर्ण योगदान और देश की स्वाधीनता के लिए दिए उनके बलिदान को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। जनजातीय नायकों एवं महापुरुषों के पुरुषार्थ एवं कृतित्व से मात्र जनजातीय समाज नहीं अपितु संपूर्ण राष्ट्र लाभान्वित हुआ। राष्ट्र के लिए जनजातीय योगदान का यह समग्र विचार, जनमानस के समक्ष लाने की आवश्यकता है। इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने भारतीय दृष्टि से स्वाधीनता के संघर्ष के सही इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण के साथ भारतीय परिप्रेक्ष्य में लिखने का अवसर प्रदान किया है।

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यह बात उच्च शिक्षा मंत्री इन्दर सिंह परमार ने बुधवार को भोपाल स्थित रविन्द्र भवन के गौरांजनी सभागृह में राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला के शुभारम्भ अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि भारत के गौरवशाली इतिहास, श्रेष्ठ ज्ञान परम्परा, सभ्यता, संस्कृति , विरासत, शौर्य, पराक्रम एवं स्वाधीनता के नायकों का बलिदान और उपलब्धियों को, वर्तमान पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को सही परिप्रेक्ष्य में भारतीय दृष्टिकोण से बताने की आवश्यकता है।

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मंत्री परमार ने कहा कि जनजातीय समाज प्रकृति पूजक समाज है। प्रकृति की पूजा में भारतीय सभ्यता का मूल भाव कृतज्ञता है। कृतज्ञता का भाव, हमारी सभ्यता और विरासत है। प्रकृति, जल स्त्रोतों एवं सूर्य सहित समस्त ऊर्जा स्रोतों के प्रति कृतज्ञता का भाव भारतीय समाज में परम्परागत रूप से आदिकाल से विद्यमान है। भारत का ज्ञान विश्व मंच पर ईसा से हजारों वर्षों पूर्व भी सर्वश्रेष्ठ था, इसलिए भारत विश्व गुरु के रूप में सुशोभित था। हम सभी को भारत के सर्वश्रेष्ठ ज्ञान पर गर्व का भाव जागृत कर, देश को पुनः विश्व मंच पर सिरमौर बनाने में सहभागिता करने की आवश्यकता है। इसके लिए भारतीय उपलब्धियों पर हीन भावना से बाहर आकर, स्वत्व का भाव जागृत करना होगा। जनजातीय नायकों के अपने अस्त्र-शस्त्र होते थे, जो वे स्वयं निर्माण करते थे। ईसा पूर्व ही जनजातीय समाज, श्रेष्ठ लोहा निर्माण करते रहे हैं। जनजातीय समाज के ऐसे कई कृतित्व, आज भी विद्यमान है। ऐसे कृतित्व का पुनः अध्ययन, शोध एवं अनुसंधान कर, तथ्यपूर्ण एवं सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

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उच्च शिक्षा मंत्री परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा को भारतीय ज्ञान परम्परा से समृद्ध करने का अवसर है। इसके लिए प्रदेश के समस्त विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में पुस्तकालयों को, भारतीय ज्ञान परम्परा और जनजातीय योगदान से जुड़े साहित्य से समृद्ध करेंगे। उन्होंने कहा कि ईसा के पूर्व के भारतीय ज्ञान को पुनः विश्वमंच पर प्रस्तुत करने के लिए, शोध एवं अध्ययन के आधार पर युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में भारतीय दृष्टिकोण के साथ, शैक्षिक परिदृश्य में तथ्यपूर्ण समावेश की आवश्यकता है।

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परमार ने कहा कि हम सभी की सहभागिता से स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष में भारत पुनः विश्वमंच पर सिरमौर बनेगा। सौर ऊर्जा से ऊर्जा के क्षेत्र में आत्म निर्भर होकर, अन्य देशों की पूर्ति करने में सक्षम राष्ट्र होगा। खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म निर्भर होकर अन्य देशों के भरण पोषण करने में सामर्थ्यवान देश बनेगा। वर्ष 2047 के विकसित एवं विश्व गुरु भारत की संकल्पना को साकार करने में हम सभी की सहभागिता आवश्यक है। मंत्री परमार ने राष्ट्र के जनजातीय नायकों के पुरुषार्थ एवं कृतित्व पर प्रदर्शित चित्र प्रदर्शनी का शुभारंभ कर प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया।

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प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा अनुपम राजन ने कहा कि स्वाधीनता संग्राम में अपनी प्राणों की आहुति देने वाले जनजातीय अमर बलिदानियों के पुरुषार्थ पर आधारित प्रदर्शनी शुभारंभ किया गया है, किंतु दुर्भाग्यवश जनजाति नायकों के चित्रों की प्रदर्शनी में लगाए गए पचहत्तर प्रतिशत चित्रों को आज हम नहीं पहचानते हैं। हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है कि जिनके बलिदान से आज हम सब खुली हवा में सांस ले रहे हैं, उनके बलिदान को हम याद रखें। राजन ने कहा कि आने वाली पीढ़ी के सामने इन बातों को रखना होगा, जिससे वह अपने नायकों को जानें और पहचानें।

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अपर सचिव (मुख्यमंत्री सचिवालय) लक्ष्मण सिंह मरकाम ने बीज वक्तव्य में बताया कि जनजाति गौरव दिवस का बीजारोपण करने वाला पहला राज्य मध्यप्रदेश है। जनजातीय गौरव दिवस के पीछे मध्यप्रदेश की एक दशक की वैचारिक यात्रा रही है। इसके बाद वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश ने सबसे पहला जनजातीय गौरव दिवस मनाया।

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मरकाम ने कहा कि पराधीन भारत में भी जनजातीय समाज इकलौता ऐसा समाज था, जो पराधीन नहीं रहा बल्कि अंग्रेजी पराधीनता के विरुद्ध मुखर रूप से विद्रोह करता रहा। ऐतिहासिक पाखंड को सही परिप्रेक्ष्य में सुधारते हुए, समाज के गौरव को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है। हमारे देश के शोधकर्ता एवं इतिहासकारों की नैतिक जिम्मेदारी है कि जनजातीय गुमनाम नायकों के पुरुषार्थ एवं योगदान को सही परिप्रेक्ष्य में भारतीय जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करें।

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जनजातियों के द्वारा राष्ट्र के लिए किए गए त्याग, बलिदान को रेखांकित करना, उनके ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक गौरवपूर्ण इतिहास को जानना इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य था। कार्यशाला में वीरांगना रानी दुर्गावती की 500वीं जन्म जयंती वर्ष एवं धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के 150वीं जयंती वर्ष के उपलक्ष्य पर प्रदेश के उच्च शिक्षण संस्थानों में जनजातीय नायकों के ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान पर विभिन्न गतिविधियों के आयोजन पर विचार मंथन हुआ। राष्ट्र के लिए जनजातीय शूरवीरों के बलिदान एवं उनके पुरुषार्थ पर आधारित गतिविधियों के लिए भी मंथन हुआ। प्रदेश के समस्त विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में जनजातीय नायकों पर आधारित वर्ष भर के कार्यक्रम एवं विभिन्न गतिविधियों के सम्बन्ध में कार्ययोजना के सृजन के लिए विमर्श हुआ।

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कार्यशाला में विमर्श हुआ कि सभी विश्वविद्यालय अलग अलग समूहों के साथ मिलकर अपने विश्वविद्यालय में गतिविधियों का आयोजन करेंगे, जिसमें उनसे संबद्ध महाविद्यालय भी सहभागिता करेंगे। महाविद्यालय स्तर पर जनजातीय नायकों के पुरुषार्थ एवं कृतित्व पर आधारित निबंध प्रतियोगिता आयोजित होगी। प्रथम तीन विजेता, विश्वविद्यालय स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में सहभागिता करेंगे और विश्वविद्यालय स्तर के विजेता राज्य स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में शामिल होंगे। उच्च शिक्षा मंत्री परमार के निर्देश पर समस्त विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ के अंतर्गत जनजातीय गौरव की प्रदर्शनी स्थापित की जाएगी।

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कार्यशाला का स्वागत उद्बोधन एवं परिचय प्रस्तावना, राजभवन जनजातीय प्रकोष्ठ की विषय विशेषज्ञ डॉ. दीपमाला रावत द्वारा प्रस्तुत की गई। आयुक्त उच्च शिक्षा निशांत वरवड़े ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर रामदास अत्राम, वैभव सुरंगे, सोभाग सिंह मुजाल्दे एवं लवकुश मेहरा सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलगुरू, प्रदेश के अग्रणी महाविद्यालयों एवं प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस के प्राचार्यगण, छात्र कल्याण के अधिष्ठातागण, भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ के नोडल अधिकारी, जनजाति अध्ययन एवं विकास केंद्र के नोडल अधिकारी विभिन्न विषयविद एवं विविध शिक्षाविद् सहित अन्य विद्वतजन उपस्थित रहे।

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