ब्रिगेडियर एच एच महाराजा सवाई भवानी सिंह की जयंती पर विशेष !

जन्म पर ऐसी शैंपेन बही कि उनका नाम 'बबल्स' हो गया

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ब्रिगेडियर एच एच महाराजा सवाई भवानी सिंह की जयंती पर विशेष !

पाकिस्तान के पैटन टैंकों पर भारी पड़े भवानी सिंह

आज 22 अक्टूबर, 1931 को ब्रिगेडियर एच एच महाराजा सवाई भवानी सिंह की जयंती है,आपके पिता जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय थे,आप उनकी पहली पत्नी महारानी मरुधर कंवर देवी से पैदा हुए थे, महारानी की उम्र महाराजा से दोगुनी बड़ी थी,उनका जन्म जब 22 अक्टूबर, 1931 को हुआ तो बहुत बड़ा जश्न मनाया गया,उसकी वजह भी थी,दरअसल बहुत सालों बाद जयपुर के महाराजा को पुत्र की प्राप्ति हुई थी,उस पर भी खास बात ये कि जयपुर में कई पीढ़ियों बाद किसी पुरुष वारिस का जन्म हुआ,इससे पहले कई महाराजाओं को गोद लेकर महाराजा बनाया गया था!

भवानी सिंह का जन्म समारोह पूरे धूमधाम के साथ मनाया गया,समारोह में अनगिनत शैंपेन की बोतलें खोली गईं,जिससे चारों तरफ़ बुलबुले हो गए,इस कारण से जयपुर के महाराजा ने भवानी सिंह जी का उप नाम बबल्स यानि बुलबुले रख दिया,बाद तक उन्हें बबुलबुले महाराजा भी कहा जाता रहा!

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भारत के साथ 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान को गुमान था कि पैटन टैंकों के भरोसे वह पश्चिमी सीमा से होते हुए दिल्ली तक पहुंच जाएगा. यह बात और है कि भारतीय सेना के तत्कालीन चीफ एसएचएफ जमशेदजी मानेकशा को पहले से ही इसका अंदेशा था. हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने के बावजूद उन्होंने तुरंत पाकिस्तान पर हमला करना उचित नहीं समझा और अपने जवानों को तैयार करने के लिए प्रशिक्षण शुरू करा दिया.

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पश्चिमी सेना की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया 10वीं पैरा रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह को. लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह ने युद्ध से निपटने के लिए पांच महीने पहले से ही जवानों को प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया.

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युद्ध का समय आया और पाकिस्तान ने अटैक किया तो उसको मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पहले से पूरी तैयारी थी. राजस्थान में बाड़मेर से लगभग 70-80 किमी दूर सेना की जोंगा जीपों में गोला-बारूद भरकर लाया गया. पैरा ट्रूपर्स को वहां उतारा गया और सेना की टुकड़ी लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह की अगुवाई में पाकिस्तानी टैंकों का मुकाबला करने बढ़ चलीं. कहां पाकिस्तान दिल्ली पर कब्जा करने निकला था और कहां लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह ने उसके छाछरो इलाके पर रात में ही तिरंगा फहरा दिया था.

लाहौर पर तिरंगा फहराने निकले पर रोक दिए गए

इसके बाद पांच दिनों तक जोरदार युद्ध हुआ. भारतीय जवानों की वीरता के आगे पैटन टैंक भी नहीं टिके और वापस पाकिस्तान की ओर मुड़ गए. पाकिस्तानी सेना के जवान पीछे हटने लगे और भारतीय सेना ने उसके इस्लामकोट, नगर पारकर और वीरावाह तक तिरंगा लहरा दिया. लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह ने पाकिस्तान के लुनियो में भी तिरंगा फहरा दिया, तभी रुकने का आदेश आ गया, वरना उनका लक्ष्य लाहौर पर कब्जा करना था. इस लड़ाई में पाकिस्तान के 36 सैनिक मारे गए और 22 को बंदी बना लिया गया.

20 किमी की दूरी तय करने में लगा पूरा दिन

पाकिस्तान को घुटनों पर लाने के बाद देश के हीरो बन चुके लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह जयपुर लौटे तो जनसैलाब उमड़ पड़ा. बताया जाता है कि लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह सांगानेर एयरपोर्ट पर उतरे तो आमेर किले तक की 20 किमी की दूरी तय करने में पूरा दिन लग गया. उन्हें जौहरी बाजार से खुली जीप में सवार कराया गया. लोगों ने सड़क पर पगड़ियां बिछाकर अपने महाराजा का स्वागत किया. इस युद्ध में अतुलनीय वीरता के लिए उन्हें महावीर चक्र से नवाजा गया !

देश के कई महाराजाओं की आदतें विचित्र थीं तो कुछ के नाम अजीब. किसी को क्या अंदाज है कि देश के सबसे अमीर राजघरानों में एक जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह का नाम बुलबुले क्यों था,इसकी भी एक कहानी है. ये कहानी जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. वैसे महाराजा ने भारत की ओर कई युद्धों में हिस्सा लिया. उन्हें लोग उनके प्रैंक और शरारतों के लिए याद करते हैं.

 

उनके प्रैंक यानि शरारतें मशहूर थीं
भवानी सिंह काफी प्रतिभाशाली और प्रैंक करने में काफी तेज. उनकी शरारतों के भी काफी किस्सें हैं. बबल्स या बुलबुले अजीबोगरीब शरारतें करके सभी से जुड़ने की अपनी क्षमता के लिए भी जाने जाते थे. उन्होंने एक बार मेहमानों को पार्टी पर बुलाया, जिसमें मसाले से भरा लाल मांस पेश किया जाना था, जो राजस्थानी व्यंजन है, जब उन्होंने डिश चखी तो बीयर और पानी था. खैर बाद में उन्हें वहीं व्यंजन परोसा गया. महाराजा खासी पार्टी देते थे. एक से एक मिठाइयां उनकी पार्टी में परोसी जाती थी !

वह एक जाने माने पोलो खिलाड़ी भी थे. उन्होंने जयपुर में विश्व कप की शुरुआत भी की. उनकी शादी 1966 में सिरमौर की राजकुमारी पद्मिनी देवी से हुई. जिससे हुई बेटी दीया कुमारी फिलहाल बीजेपी की सांसद हैं. भवानी सिंह ने दीया कुमारी के बेटे पद्मनाभ सिंह को गोद लिया था, जो अपने दादा की तरह ही एक अनोखा उपनाम रखतें हैं – पचो.

राष्ट्रपति के अंगरक्षक बने
शिक्षा पूरी होने के बाद वे 1951 में वह तीसरी केवलरी रेजिमेंट में बतौर सैकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशंड हुए. 1954 में वे राष्ट्रपति के अंगरक्षक के रूप में चुने गए. 1970 में उन्होंने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध से पहले प्रशिक्षण ‘मुक्तिवाहिनी’ में सेना की मदद की.

1971 में पाकिस्तान के साथ हुए वॉर में उनके नेतृत्व में 10वीं रेजिमेंट ने पाकिस्तान के सिंध प्रांत में छाछरो पर कब्जा किया था. सेना में उनके योगदान के लिए उन्हें दूसरा सबसे सर्वोच्च वीर​ता पुरस्कार ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया. 1972 में उन्होंने सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली.

सबसे अमीर राजा
भवानी सिंह के पिता सवाई मान सिंह द्वितीय की 1970 में असामयिक मृत्यु के बाद जयपुर की गद्दी पर बैठे थे. वह आजादी के बाद सबसे अमीर राजाओं में एक थे. अब भी जयपुर राजघराना देश के सबसे धनी राजघरानों में है.

कांग्रेस से चुनाव भी लड़ा
ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए. उन्होंने सन 1989 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन भाजपा नेता गिरधारी लाल भार्गव से मात खा गए. फिर महाराजा ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली. दुनियाभर में फेमस महारानी गायत्री देवी उनकी सौतेली मां थीं और उनके पिता की तीसरी बीवी.

महल को होटल में बदला
भवानी सिंह ने 1958 में रामबाग पैलेस को एक शीर्ष-श्रेणी के लग्जरी होटल में बदला. ये देश के लग्जरी होटल में एक है. उसके बाद राजस्थान के कई महाराजाओं ने अपने महल को होटल में तब्दील करना शुरू किया.

एक महीने तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद 17 अप्रैल 2011 को सिंह का निधन हो गया.तब राजस्थान सरकार ने दो दिन के राजकीय शोक की घोषणा की.

राजीव गांधी ने सेना का मनोबल बढ़ाने भेजा था श्रीलंका

साल 1951 में तीसरी कैवेलरी रेजिमेंट में कमीशन पाने वाले सेकेंड लेफ्टिनेंट भवानी सिंह ने साल 1974 में बटालियन के कमांडर पद लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी. श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के तहत भारतीय सेना की कार्रवाई के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें वहां अपनी यूनिट का मनोबल बढ़ाने के लिए भेजा था. इसमें सफलता मिलने पर उनको साल 1991 में ब्रिगेडियर की मानक पदवी से सम्मानित किया गया.

24 जून 1970 को बनाए गए थे जयपुर के महाराजा

पिता की असामायिक मृत्यु के बाद सेना में रहते हुए भवानी सिंह को 24 जून 1970 को जयपुर का महाराजा बनाया गया. हालांकि, 28 दिसंबर 1971 को संविधान में किए गए 26वें संशोधन के जरिए राजा-महाराजाओं के अधिकार खत्म कर दिए गए और उनकी पदवी सांकेतिक रह गए पर रुतबा खत्म नहीं हुआ. उनका विवाह साल 1966 में सिरमुर की राजकुमारी पद्मिनी देवी से हुआ था. दोनों की एकमात्र संतान बेटी राजकुमारी दीया कुमारी हैं. 16 अप्रैल 2011 की देर रात को बीमारी के चलते उनका निधन हो गया.

बेटी दिया कुमारी ने सुप्रीम कोर्ट में बताया, राम के वंशज हैं हम

अयोध्या में राम मंदिर से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि वर्तमान में राम का कोई वंशज है क्या. इस पर सवाई भवानी सिंह की बेटी राजकुमारी दीया जो की वर्तमान में राजस्थान की उप मुख्यमंत्री भी हैं ने दावा किया था कि वे लोग श्रीराम के बेटे कुश के वंशज हैं. उन्हीं के नाम पर कच्छवाहा या कुशवाहा वंश चल रहा है. उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी ने जयपुर स्थित सिटी पैलेस की वंशावली भी दिखाई थी, जिसमें भवानी सिंह 307वें वंशज हैं. इसके अनुसार 62वें वंशज अयोध्या के राजा दशरथ, 63वें श्रीराम और 64वें कुश थे.

इंदिरा गांधी से सौतेली मां की नहीं बनी तो जाना पड़ा जेल

ब्रिगेडियर भवानी सिंह की सौतेली मां जयपुर की महारानी गायत्री देवी बाद में राजनीति में आ गई थीं और इंदिरा गांधी से उनकी नहीं बनती थी. इसलिए इंदिरा गांधी ने आमेर के किले में छापा मारने का हुक्म दे दिया. तब किले की खुदाई में इतना सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात मिले थे कि 60 ट्रकों में भर कर ले जाए गए थे. महारानी गायत्री देवी और सवाई भवानी सिंह को गिरफ्तार भी कर लिया गया था. दोनों को तिहाड़ ले जाया गया तो सभी अफसर अपने राजा और महारानी के सामने झुक गए. तिहाड़ जेल अधीक्षक ने अपने घर से उनके लिए साफ बिस्तर मंगाया और हर संभव सुविधा मुहैया कराई थी.

इसका पता चलने पर इंदिरा गांधी ने जेल का पूरा बदल दिया. द हाउस ऑफ जयपुर नामक किताब में जिक्र है कि सवाई भवानी सिंह को जेल के बाथरूम में रखा गया. गायत्री देवी को सीलन भरा बदबूदार कमरा दिया गया था. उन दोनों से कोई मिल भी नहीं सकता था. शाम को टहलते वक्त गायत्री देवी और भवानी सिंह की मुलाकात होती थी. वह पांच महीने तिहाड़ में रहे.

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