नेपाल में ओली की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति और शपथ ग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

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  नेपाल में ओली की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति और शपथ ग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

काठमांडू । नेपाल में केपी शर्मा ओली की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति और शपथ ग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस संबंध में दायर याचिका में पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल प्रचंड के करीबी वकीलों ने नियुक्ति और शपथ ग्रहण को असंवैधानिक होने का दावा किया है।

याचिका में राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल के प्रचंड को प्रधानमंत्री से पदमुक्त करने के बाद नई सरकार बनाने के लिए किए गए आह्वान को असंवैधानिक बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि संविधान की धारा 76(2) के मुताबिक प्रचंड को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था। प्रचंड सदन में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए तो राष्ट्रपति को संविधान की धारा 76(3) के तहत सरकार बनाने का आह्वान करना चाहिए। लेकिन 76(2) के तहत सरकार बनाने का आह्वान कर ओली को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करना संविधान के विपरीत है।

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सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए इस पर 21 जुलाई को सुनवाई की तारीख तय की है। उधर, ओली 21 जुलाई को सदन में विश्वास प्रस्ताव पेश करने की तैयारी में है। उल्लेखनीय है कि नेपाल के संविधान में सरकार गठन को लेकर तीन अलग प्रावधान है। संविधान की धारा 76(1) के तहत स्पष्ट बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल के नेता को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करने का प्रावधान है। यदि किसी भी पार्टी को चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं आता है तो संविधान की धारा 76(2) के तहत दो या दो से अधिक दलों के उस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है जिसके पास बहुमत सांसदों का समर्थन हो। धारा 76(1) और 76(2) के तहत भी यदि सरकार का गठन नहीं हो पाता है तो राष्ट्रपति के तरफ से प्रतिनिधि सभा के सबसे बड़ी पार्टी के संसदीय दल के नेता को संविधान की धारा 76(3) के तहत प्रधानमंत्री पद पर सीधे नियुक्त करने का प्रावधान है। इसके बाद प्रधानमंत्री को संविधान की धारा 76(4) के तहत 30 दिनों के भीतर सदन में विश्वास का मत हासिल करना होगा। यदि इन तीनों प्रावधान में भी किसी सरकार को बहुमत नहीं मिल पाता है संविधान की धारा 76(5) के तहत प्रतिनिधि सभा के किसी भी सांसद जिसके पक्ष में बहुमत सांसदों का हस्ताक्षर होता है उसके तहत प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति किया जा सकता है। इस प्रावधान में दलों का व्हिप लागू नहीं होता। राष्ट्रपति के पास बहुमत सांसदों के हस्ताक्षर सहित दावा पेश करना होता है।

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