अभिनेता मनोज कुमार का 87 की उम्र में निधन

सिनेमा जगत को तीन दशक में ढेरों सुपरहिट देने वाले दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार अब इस दुनिया में नहीं रहे।भारत कुमार कहे जाने वाले मनोज कुमार का 87 साल की उम्र में निधन हो गया है। वह कुछ दिनों से मुंबई स्थित एक अस्पताल में भर्ती थे।
मनोज कुमार के जाने से फिल्मी दुनिया को एक बड़ा झटका लगा है। उन्होंने जब तक बड़े पर्दे पर काम किया, तब तक उन्हें जनता के दिलों पर राज किया है। उनका जाना वाकई एक बड़ी क्षति है। उन्होंने भले ही दो दशक पहले आखिरी फिल्म की हो, लेकिन उनकी फिल्मों का असर हमेशा दर्शकों पर रहा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मनोज कुमार का निधन शुक्रवार की सुबह हुआ है। उन्हें हार्ट से रिलेटेड कॉम्प्लीकेशंस की वजह से कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल द्वारा जारी किए गए मेडिकल सर्टिफिकेट के मुताबिक, निधन का दूसरा कारण डीकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस है।
मनोज कुमार का जन्म 1937 में अबोटाबाद (उस वक्त ब्रिटिश भारत, अब पाकिस्तान का खैबर पख्तूनख्वा प्रांत) में हुआ था। दिलचस्प बात ये है कि जिस अभिनेता को आज हम मनोज कुमार के नाम से जानते हैं, उनका नाम हरिकृष्ण गोस्वामी रखा गया था। बाद में जब वे मुंबई आये तो उन्होंने अपना नाम बदलकर मनोज कुमार रखा। ये नाम ही आगे चलकर भारत भक्ति की पहचान बन गया।
मनोज कुमार ने 1957 में ‘फैशन’ से अपने करियर की शुरुआत की थी। फिर 1960 में आई फिल्म ‘कांच की गुड़िया’ में बतौर लीड एक्टर उन्हें मौका मिला, जिससे उन्हें पहचान मिली। इसके बाद कुमार ने ‘उपकार’, ‘पत्थर के सनम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘संन्यासी’ और ‘क्रांति’ जैसी कई हिट फिल्में दी। उनकी फिल्मों में एक खास बात थी, देशभक्ति। उनके किरदारों का नाम अक्सर ‘भारत’ होता था, और यहीं से उन्हें नया नाम मिला ‘भारत कुमार’।
दादासाहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित
मनोज कुमार सिर्फ एक बेहतरीन एक्टर ही नहीं, बल्कि एक शानदार निर्देशक भी रह चुके हैं। उन्होंने न सिर्फ दमदार अभिनय किया बल्कि निर्देशन में भी अपने जौहर दिखाए। उन्हें 1992 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पद्म श्री, और 2015 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जा चूका है।
60 और 70 के दशक में मनोज कुमार हर फिल्ममेकर की पहली पसंद बन गए थे। उन्होंने लगभग 55 से 60 फिल्मों में अभिनय किया, और करीब 8 फिल्मों का निर्देशन किया। उनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजन का ही नहीं बल्कि सामाजिक और देशभक्ति संदेशों से भरपूर होती थीं।
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